सम्पादकीय
19-03-2025 Posted by: सम्पादक (पिघलता हिमालय)
जीवन-जगत बदरंग न हो
त्यौहार हमारे जीवन और इस जगत में रंग भरने के लिये आते हैं। विश्व में चारों ओर किसी न किसी तरह के त्यौहार वर्षभर होते हैं जो उनकी स्थितियों के अनुसार चलन में हैं। होली का त्यौहार भी इनमें से एक है। भारत के अलावा कई देशों में होली का त्यौहार अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है। पफाल्गुन माह की उमंग में होली की खुशियों का यौवन दिखाई देता है। यही कारण है प्राकृतिक रंगों व पफाग-होली गायन की लम्बी परम्परा रही है। इसमें भी ब्रज और पहाड़ की होली की ध्ूम खूब रहती है। वर्तमान में जैसा कि होने लगा है हर कोई मोबाइल फोन में उलझा है और तीज-त्यौहारों की रौनक में रमना छोड़ रील-फोटो बनाने में व्यस्त है। किसी भी आयोजन में कुछ ने तो पफोटो-रील को ऐसा मान लिया है कि इसके बिना सब अध्ूरा हो। ऐसे लोग वास्तविक उल्लास से बेखबर होकर अपनी पफोटो प्रचार में डूबे हैं और मान बैठे हैं कि दुनिया ...
आगे पढेंबलमा जै रई परदेश मैंके लागी उदेख
19-03-2025 Posted by: सम्पादक (पिघलता हिमालय)
बलमा जै रई परदेश मैंके लागी उदेख, सुवा उनू बिना मेरी मन नहीं लागे। हाश् जी सुवा उनू बिना मेरो मन नहीं लागे। इथां चानू उथं चानू, पिफर लागौर निशास। सुवा उनू बिना मेरो मन नहीं लागे। हाँ जी सुवा।। स्वामी ज्यू न्है गई परदेश मैंके लागी उदेख। सुवा उनू बिना मेरो मन नहीं लागे। हाँ जी सुवा।। लिखि लिखि पतिया उनू पास भेजनू, नी आयी उनर सन्देश। सुवा उनू बिना मेरी मन नहीं लागे। हो जी सुवा..... इथां करवट ल्हिनू उथां करवट, पिफर लागो निशाश। सुवा उनू बिना मेरो मन नहीं लागे। बलमा जै रईं परदेश, मैं के लागो उदेख। सुवा उनू बिना मेरो मन नहीं लागें। हाँ जी सुवा।। सासु रिसाली सौर ज्यू रिसानी, देवर बनौनी मजाक। सुवा उनू बिना मेरे कतई चित्त नहीं लागे। हाँ जी सुवा।। अबकी पफागुन में कै। संग खेलूं होली, कैं संगे खेलूं पफाग।। सुवा उनू बिना मेरो मन नहीं लागे।...... बलमा जै रईं परदेश मैंके लागी उदेख.... ...
आगे पढेंसुपाकोट की होली
19-03-2025 Posted by: सम्पादक (पिघलता हिमालय)
फाल्गुन मास का आगाज होते ही होली के दिन याद आ जाते हैं और शिवरात्रा के बाद तो होली का माहौल बन ही जाता है। हमारे मूल ग्राम सुपाकोट -ओलियागांव जि.अल्मोड़ा की होली उस इलाके में मशहूर हुवा करती थी। होलिकाष्टमी के दिन चीर बन्धन के साथ ही होली की बैठक शुरू हो जाती और छलड़ी के बाद दम्पति टीका के दिन समापन होता था। चर्तुदशी के दिन सोमेश्वर शिव मन्दिर के प्रांगण में सुपाकोट के साथ साथ लोधघाटी, चनौदा, चौड़ा गाँव आदि जगह से होली की टीमों द्वारा होली गायन का आयोजन होता था जो अब बन्द हो गया है और जीतने वाली टीम को पुरस्कृत किया जाता था। सुपाकोट-ओलियागाँव की टीम हमेशा पह ...
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