हिमालय संगीत शोध समिति हल्द्वानी नैनीताल
1993 में हिमालय संगीत शोध समिति ने कुमाउनी होली के वृहद आयोजनों के साथ अपनी गतिविधियां शुरु की। साथ भूले बिसरे कलाकारों को एकत्रित कर वृहद आयोजनों की निरन्तरता बनाए रखी।
संस्था के संस्थापक डा0 पंकज उप्रेती के निर्देशन में होने वाले तमाम कार्यकमों में हर आम व खास लोग जुड़ते चले गये। सन 1998 में हल्द्वानी में प्रथम बार वृहद रूप से होली के परम्परागत आयोजनों की नींव रखी गयी। संस्था की गतिविधियों को गति देने के लिये सोसाइटी रजिस्टीकरण कार्यालय से संस्था का पंजीकरण किया गया। श्रीमती कमला उप्रेती की अध्यक्षता में संस्था की कार्यकारिणी गठित की गई।
हिमालय संगीत शोध समिति एक संस्था मात्रा न होकर एक आन्दोलन भी है। जिसमें कला और कलाकारों को प्रोत्साहित करने व परम्परागत कलाओं को बनाये रखने पर कार्य किया जाता है।
संस्था के अभियान के तहत सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में भ्रमण कर गोष्ठी आयोजित करने के साथ बाल, युवा व किशोर वर्ग के कलाकारों को प्रोत्साहित किया जाता रहा है। चूंकि पिघलता हिमालय की भांति संगीत की धारा भी सदियों से पिघल कर समाज को उन्नत बनाती रही है। इसी सूत्रा को बताने के लिये बाल व युवा कलाकारों की कार्यशाला भी समिति करती रही और हल्द्वानी सहित पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, चम्पावत, बागेश्वर जिले के तमाम स्थानों पर वृहद आयोजन संस्था के नेतृत्व में हुए। सांगीतिक अभियान के साथ ही गुमनाम कलाकारों को प्रकाश में लाने के लिये पिघलता हिमालय की लेखनी कारगर रही है। अभियान के तहत शास्त्राय गायन, वादन व नृत्य के प्रशिक्षण के लिये भातखण्डे संगीत विधापीठ लखनऊ से सम्बद्ध कार्यक्रम किये जाने लगे। संगीत नाटक अकादमी भारत सरकार के देशज कार्यक्रम का सफल संयोजन करने वाली इस संस्था ने राष्ट्रीय सेमीनारों का कुशल आयोजन भी किया है। समिति चाहती है कि शिक्षा का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार हो, इसके लिये जे0के0पुरम सेक्टर डी में स्वयं के साधनों पर प्रशिक्षण की व्यवस्था कर दी गई। इसका लाभ तमाम बाल, युवा व किशोर वर्ग के प्रशिक्षार्थी ले रहे हैं। हिमालय संगीत के सांस्कृतिक आन्दोलन में बुधिजीवियों का साथ है। शिक्षक, चिकित्सक, वैज्ञानिक, कलाकार, साहित्यकार, पत्रकार सहित तमाम विधाओं के मर्मज्ञों की भागीदारी समिति की सफलता की सूचक है।
सहभागिता
हिमालय संगीत शोध समिति के अभियान में समिमलित लोगों की सूची बहुत ही लम्बी है। फिर भी इसके संरक्षण में आगे रहने वालों का नामोल्लेख किया जा रहा है- डा. पंकज उप्रेती, डा0 निर्मल चन्द्र मुनगली, व्यापार मण्डल के श्री एन0सी0तिवारी, श्री नवीन चन्द्र वर्मा, श्री उमेश पाण्डे, श्री अशोक जोशी, डा. जे0सी0पन्त, श्री गोविन्द बल्लभ भटट, श्री भोलादत्त भटट, श्री ताराचन्द्र गुरुरानी, श्री भुवन चन्द्र कपिल, स्व. केशवदेव वशिष्ठ, स्व. चन्द्रशेखर कपिल, श्री गिरीश पाण्डे, पदमश्री शेखर पाठक, श्री राजीवलोचन साह नैनीताल समाचार सम्पादक, प्रो.देवसिंह पोखरिया, श्री विपिन पाण्डे, श्री गिरीश उप्रेती, प्रो. पीसी बाराकोटी पूर्व निदेशक उच्चशिक्षा उत्तराखण्ड, पूर्व प्राचार्य डा0शोभा चन्द्र पन्त, श्री विष्णुदत्त जोशी मुरली महाराज, श्री तारादत्त काण्डपाल प्रधानाचार्य श्रीराम संस्कृत पाठशाला नैनीताल, श्री तारादत्त पाण्डे तरदा, पूर्व प्राचार्य प्रो0 विपिन चन्द्र उप्रेती, पूर्व प्राचार्य डा. डीएन पन्त, प्रो0हीरासिंह भाकुनी, प्रो0अतुल जोशी, डा.सन्तोष कुमार मिश्र, प्रो0 ओमप्रकाश साह गंगोला, श्री जमुनादत्त कोठारी, श्रीमती मीनाक्षी जोशी, श्री धीरज उप्रेती, श्री विजय काण्डपाल, श्री यमन उप्रेती, विजय काण्डपाल.....................।
लम्बी सूची उन लोगों की भी है जो संस्था को संरक्षण देते रहे हैं, जिसमें स्व. आनन्द बल्लभ उप्रेती सम्पादक पिघलता हिमालय, संस्थापक अध्यक्ष,, पदमश्री स्व. डीडी शर्मा, संस्थापक कुलपति कुमाउफ विश्वविधालय स्व. डीडी पन्त, सिटी मजिस्ट्रेट स्व. मधार कुमार, सितारवादक स्व. देवीराम, रंगकर्मी स्व. गिरीश तिवारी गिर्दा, स्व. जयदत्त काण्डपाल, पूर्व कुलपति स्व. आरसी पन्त, स्व.डा. शमशेर बिष्ट अल्मोड़ा,,..................।
संस्था के बढ़ते कदमों के साथ जुड़ते गये लोगों का योगदान हमेशा स्मरणीय रहेगा। संस्था उन सभी लोगों को नमन करती है जो हमारी आने वाली पीढियों का मार्ग प्रशस्त करेगी।
होली
हिमालय संगीत शोध समिति के अभियान के तहत होली संगीत महत्वपूर्ण है। पहाड़ की होली गायकी को लेकर ही शुरु हुए संस्था के कार्यक्रमों का परिचय बहुत पुराना है। डा. पंकज उप्रेती ने एक संगीतज्ञ के रूप में पहाड़ की खड़ी व बैठ होली पर जो कार्य किये वह गांव गांव-शहर शहर तक याद किये जाते हैंं। होली गायन शैली के लिये छोटे बड़े मंचों पर हिमालय संगीत शोध समिति का प्रदर्शन होता रहता है। संस्था की ओर से होली महोत्सव के रूप में वृहद आयोजन किये जाते हैं।
शोध कार्य
हिमालय संगीत शोध समिति के अभियान के तहत शोध कार्य होते हैं। लोक में प्रचलित गीतों की शैली, उनके स्वरांकन, उनके ताल, उनक नृत्य विषयों पर समिति के कार्य हैं। होली गायन विधि रामलीला, लोक गीत, संस्कार गीत सहित तमाम विधाओं पर यह कार्य जारी हैं।
पुस्तक प्रकाशन
पिघलता हिमालय के सहयोग से संगीत विषयक पुस्तकों का प्रकाशन भी सम्भव हो सका है। स्वरांजलि, संगीतसुधा, संगीतमणि, होली, रामलीला जैसे विषयों पर विधार्थियों व जिज्ञासुओं के लिये पुस्तकें उपलब्ध हैं। इसी प्रकार आगे भी नवीन पुस्तकों के प्रकाशन पर कार्य किया जा रहा है।
प्रतिभाग
हिमालय संगीत शोध समिति से जुड़े कलाकारों द्वारा समय समय पर विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेकर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। भारत युवा महोत्सव उड़ीसा, अमृतसर, चैनर्इ, लखनउफ सहित तमाम आयोजनों में इन कलाकारों ने मंचीय प्रस्तुतियां की हैं। क्षेत्राीय, जिला व प्रदेश स्तर की प्रतियोगिताओं में निरन्तर भागीदारी कर पुरस्कृत होते रहे हैं। विभिन्न विभागीय प्रतियोगिताओं में भी संगठन से जुड़े कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते रहे हैं।
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